बिना शरीर को नुकसान पहुंचाईए रोगों का निवारण कैसे करें?
प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों ने बहुत अलग-अलग तरह की पद्धतियों का प्रचलन किया था जिस से रोगों का निवारण किया जा सके। लेकिन आधुनिक काल में यह सभी पद्धतियां धीरे-धीरे विलुप्त होती चली जा रही है और इसका सीधा और साधारण अर्थ यह है कि लोगप्राचीन काल की पद्धतियों को अपनाना नहीं चाहते हैं और वह दिन प्रतिदिन अंग्रेजी दावों में निर्भर होते चले जा रहे हैं। जिसके कारण हमारे शरीर में प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हम धीरे-धीरे अंग्रेजी दावों का शिकार होते चले जा रहे हैं और आदत सी हो गई है अंग्रेजी दावों पर अपने आप को निर्भर करना। प्राचीन काल में ऋषि मुनियों के द्वारा मंत्रो और तंत्र के द्वारा रोगों का निवारण किया जाता था और इसी पद्धति का आरंभ हमने किया है। हमने मंत्रो और तंत्र के द्वारा हमारे बीच जितने भी आधुनिक काल में रोग जैसे - *हृदय* *रोग* , *मधुमेह* रोग, thyroid, *गठिया* वात, नाक से संबंधित रोग, *किडनी* से संबंधित रोग, *उच्च* और *निम्न* *रक्तचाप* , *बवासीर* आदि ।
सभी प्रकार के *रोगों* का निवारण मंत्र और तंत्र के द्वारा किया जाता है।
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